yamuna river pollution|कारण जलीय जीवन पर प्रभाव, नई तकनीक और जागरूकता|

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yamuna river pollution: यमुना नदी, जिसे भारत की जीवनरेखा माना जाता है, आज गंभीर प्रदूषण का सामना कर रही है। यह नदी न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका का भी स्रोत है। लेकिन, बढ़ते प्रदूषण ने इसे एक संकट में बदल दिया है।

यमुना, जिसे हम सब ने भूगोल में पड़ा ही होगा। यह नदी हिमालय से निकलकर भारत के कई राज्यों से भ्रमण करते हुए गंगा से जाकर मिलती है। यमुना की लंबाई 1376 किलोमीटर है। हिमालय से साफ पानी लेकर गुजरने वाली यह नदी कैसे हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में दूषित होती है ? इसका कारण आज हम जानेंगे।

यमुना नदी में प्रदूषण का मुख्य कारण क्या है?


यमुना नदी के प्रदूषण के मुख्य स्रोत

औद्योगिक अपशिष्ट

दिल्ली, पानीपत, गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और यमुनानगर जैसे अलग-अलग औद्योगिक क्षेत्र जो ऐसे स्थान पर बसे हैं। जहां से यमुना को कई जल स्रोत मिलते हैं। जिसमें तेल रिफाइनरी, फार्मास्यूटिकल्स, केमिकल, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, डिस्टलरी, पल्प, बुनाई और चीनी जैसे उद्योग शामिल है।यह उद्योग अपने रासायनिक अपशिष्ट को बिना उपचार के नदी में छोड़ देते हैं।

रासायनिक उद्योगों से निकलने वाले भारी धातु (जैसे, सीसा, Mercury, कैडमियम), हानिकारक रसायन और सॉल्वेंट्स यमुना नदी में मिलकर पानी को अत्यधिक प्रदूषित कर देते हैं।

स्नातक और रंगाई उद्योग (Textile and Dyeing Units)। ये उद्योग रंगाई और धोने के दौरान गंदा पानी और रासायनिक अपशिष्ट छोड़ते हैं, जो यमुना नदी में समाहित होकर इसके पानी को प्रदूषित कर देते हैं। ये रसायन पानी के रंग, गंध और उसकी गुणवत्ता को बिगाड़ते हैं।‌

निर्माण उद्योग, जैसे कि सीमेंट और स्टील मिल, अपने उत्पादन प्रक्रिया के दौरान प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें से कुछ उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट यमुना में मिलता है, जो पानी को अशुद्ध करता है।

घरेलू सीवेज

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति यमुना के कई स्थानों पर गुणवत्ता की निगरानी करती है।2022 में उनके द्वारा कहा गया कि यमुना में प्रतिदिन 200 मिलियन गैलन से अधिक सीवेज यानी की 75.60 करोड़ लीटर से अधिक सीवेज बिना उपचारित की नदी में छोड़ा जाता है।दिल्ली का 80% घरों का सीवेज कचरा जैसे खराब पाणी, प्लास्टिक का कचरा यमुना में जाता है।दिल्ली और अन्य शहरों का अनुपचारित सीवेज सीधे यमुना में प्रवाहित होता है।दिल्ली में अनुमानित सीवेज उत्पादन 720 मिलियन गैलन प्रतिदिन है। एक गैलन आवासतन 3.78 लीटर होता है।

कृषि अपशिष्ट

किसान अपनी फसलों को बेहतर बनाने के लिए रासायनिक उर्वरकों (जैसे नाइट्रेट्स, फॉस्फेट्स) और कीटनाशकों (जैसे एन्थ्राक्स, पाइरेथ्रॉइड्स) का व्यापक रूप से उपयोग करते हैं। जब ये रसायन बारिश या सिंचाई के दौरान बहकर नदियों में मिल जाते हैं, तो नदी के जल में अत्यधिक पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फास्फोरस) की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे जल प्रदूषण और शैवाल का अति वृद्धि (Eutrophication) होती है। इससे जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जो मछलियों और अन्य जलजीवों के लिए हानिकारक है।

यमुना नदी के बेसिन(नदी के ऊपरी क्षेत्र में स्थित इलाके जहां के जल स्रोत नदी में मिल जाते हैं) में लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि है। इस विशाल क्षेत्र में उपयोग होने वाले रसायन और कृषि अपशिष्ट स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक मात्रा में नदी में पहुंचते हैं।कृषि की अधिकता और नदियों के किनारे अधिक बसी हुई आबादी के कारण, कृषि अपशिष्टों की मात्रा बढ़ गई है। यमुना नदी में पानी की कमी और अत्यधिक पानी खींचने (Water Extraction) के कारण नदी का जलस्तर घटने से, प्रदूषण की सांद्रता (Concentration) बढ़ जाती है और नदी में जमा अपशिष्टों की मात्रा भी अधिक हो जाती है।

धार्मिक कार्य

फूल, दीपक, शहद, मिठाइयाँ, पत्तियां और अन्य पूजा सामग्री, जो अक्सर सिंथेटिक वस्त्रों से बनाई जाती हैं, पूजा के बाद नदी में विसर्जित कर दी जाती हैं। इनमें से कई सामग्रियाँ जल में घुलकर प्रदूषण पैदा करती हैं। विशेष रूप से प्लास्टिक और अन्य सिंथेटिक सामग्री जलाशयों में लंबे समय तक सड़ती नहीं है, जिससे जल गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।पूजा के दौरान जल में अर्पित किए जाने वाले घी, तेल, शक्कर और अन्य खाद्य पदार्थ नदी के जल में घुलकर जल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।धार्मिक विधि के दौरान फूल, मूर्तियाँ और अन्य सामग्री नदी में प्रवाहित की जाती हैं।छठ पूजा के दौरान नदी और जलाशयों के किनारे भारी भीड़ होती है। यह भीड़ नदी के पानी को और अधिक गंदा करती है, क्योंकि अधिक लोग जल में प्रवेश करते हैं, और पानी में प्रदूषक तत्व अधिक मात्रा में घुलते हैं।

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यमुना नदी का प्रदूषण किस हद तक बढ़ चुका है?


yamuna river pollution
Representative image

फीकल कोलिफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं, जो मानव या जानवरों के पाचन तंत्र,‌मल में पाए जाते हैं। पानी में इनकी उपस्थिति से यह संकेत मिलता है कि पानी प्रदूषित हो सकता है और उसमें दस्त, बुखार,पेट दर्द,पेचिश, यकृत संबंधित बीमारी और आतों में संक्रमण जैसी बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्मजीव हो सकते हैं।

अगस्त 2024 माह की बारिश के बावजूद नदी में फीकल कोलिफॉर्म का स्तर बहुत उच्च था। यह स्तर 4,900,000 MPN (most probable number)/100 ml तक पहुंच गया था, जोकि नदी के पानी में फीकल कोलिफॉर्म की बहुत अधिक मात्रा को दर्शाता है।

यह आंकड़ा नदी के पानी के मानक स्तर से 1,959 गुना अधिक था (जहां मानक 2,500 यूनिट्स/100 ml होना चाहिए) और आवश्यक सीमा 500 यूनिट्स से तो 9,800 गुना अधिक था।

यह प्रदूषण का स्तर फरवरी 2022 के बाद सबसे खराब था, जब आगरा शहर में फीकल कोलिफॉर्म का स्तर 6,300,000 यूनिट्स तक पहुँच गया था।

इसका मतलब यह है कि पानी में संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया की अत्यधिक मात्रा थी, जो मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।

दिल्ली का वायु प्रदूषण और होने वाली बीमारियां

क्या यमुना नदी का पानी पीने के लिए सुरक्षित है?


आपको समझाने के लिए हम दिल्ली का उदाहरण लेते हैं।दिल्ली के लोग, यमुना नदी और अन्य स्रोतों से मिलने वाले पानी का उपयोग करते हैं। लेकिन यह पानी सीधे पीने के लिए उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि यह प्रदूषित होता है। दिल्ली में पानी के लिए विभिन्न स्रोतों का मिश्रण होता है।

यमुना नदी दिल्ली का मुख्य जल स्रोत है।इस पानी को विभिन्न जल उपचार संयंत्रों में शुद्ध किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रक्रियाएं जैसे फ़िल्ट्रेशन, क्लोरीनेशन, और रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) शामिल होती हैं, ताकि इसे पीने योग्य बनाया जा सके।दिल्ली में कई इलाकों में भूमिगत जल का भी इस्तेमाल होता है। हालांकि, कई क्षेत्रों में जलस्तर कम हो गया है और जल का स्रोत प्रदूषित हो सकता है, इसलिए इस पानी को भी शुद्ध किया जाता है।दिल्ली में कई जल शुद्धि संयंत्र (WTPs) हैं, जो यमुना और अन्य जल स्रोतों से पानी लेकर उसे पीने के योग्य बनाते हैं। इन संयंत्रों में पानी को रासायनिक और शारीरिक प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है, ताकि उसमें से बैक्टीरिया, वायरस, और अन्य प्रदूषक हटाए जा सकें।

यमुना नदी में प्रदूषण के कारण जलीय जीवन और पशुओं पर क्या असर पड़ रहा है?


औद्योगिक रसायन, घरेलू कचरा और कृषि रसायन जब पानी में मिल जाते हैं।प्रदूषण से पानी का PH स्तर बढ़ जाता है। तो पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। जिससे मछलियां और अन्य जल जीव जीवित नहीं रहते। यह रसायन इतने जहरीले होते है, कि उनको त्वचा संबंधित विकार, श्वसन और शारीरिक कार्यों को प्रभावित करता है। उसी के साथ उनका प्रजनन प्रभावित होता है। जिससे उनकी संख्या कम होती है। कालिंदी कुंज घाट जैसे इलाकों में हजारों मछलियां मृत पाई जा चुकी है।

घातक रसायनों से मछलीयां ही नहीं मरती, बल्कि नदी के तट पर जो जैव विविधता बसी है, उसको भी ठेस पहुंचती है। जिसके कारण जब पानी इतना दूषित होता है तो पेड़ पौधों की गुणवत्ता कम हो जाती है। पेड़ पौधों को खाने वाले पशु शारीरिक समस्याओं से गुजर रहे होते हैं।आज यमुना का पानी नदी के आसपास के कई इलाकों में पीने के लिए उपयोग किया जाता है। यह पानी फिल्ट्रेट किया गया होता है। लेकिन पशु,पक्षियों की बात की जाए जो यमुना पर आश्रित हैं। तो उन्हें कोई विकल्प ही नहीं होता इस जहरीले पानी को पीने की बजाय। यमुना नदी के तट पर जंगली सुअर, नेवला, भारतीय खरगोश, हॉग हिरण, साही, तेंदुआ आदि मौजूद हैं। वह इस पानी को पी लेते हैं जिसे जिककसके कारण इनकी संख्या में काफी कमी आ गई है।

यमुना नदी के प्रदूषण को लेकर आम नागरिकों की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए?


yamuna river pollution|कारण जलीय जीवन पर प्रभाव, नई तकनीक और जागरूकता|

आम नागरिकों को यह समझना चाहिए कि नदी हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। यमुना नदी न केवल पानी का स्रोत है, बल्कि कृषि, उद्योग, पेयजल और पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए भी आवश्यक है।बच्चों और युवाओं में नदी की सफाई और प्रदूषण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों और समुदायों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। आम नागरिकों को अपनी आदतों के प्रति जागरूक रहना होगा। उनके द्वारा जो प्लास्टिक का उपयोग होता है, वह घूम फिर कर नदी में ही जाता है। जिसका प्रभाव तटीय वन्य जीवों को झेलना पड़ता है और प्रत्यक्ष रूप से उन नागरिकों के ऊपर खराब स्वास्थ्य से प्रभाव पड़ता ही है। पर्यावरण एक्टिविस्टों के द्वारा हर एक आम नागरिक के आदतों को समझना और उन्हें समझाना होगा। जिससे नदी एवं स्वास्थ्य प्रभावित हो रहे हैं। जैसी आम नागरिकों के द्वारा अनावश्यक वस्तुओं का उपभोग। उन्हें समझना होगा कि उनके द्वारा वस्तुओं का उपयोग ही उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

यमुना नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए क्या आधुनिक तकनीकें अपनाई जा सकती हैं?


यमुना के अंदर 80% से ज्यादा पानी सीवेज का होता है जो उद्योग और घरों से निकलता है। दिल्ली जैसे बड़े इलाकों में इंटरसेप्टर सीवेज़ प्रणाली का निर्माण किया जा सकता है। इससे सीवेज को पहले एकत्रित किया जाता है और फिर उसे उपचारित कर नदी में डाला जाता है।लंदन में,थेम्स क्लीनिंग” परियोजना के तहत, इंटरसेप्टर प्रणाली को लागू किया गया है। यह प्रणाली नदी में गिरने वाले सीवेज़ और गंदे पानी को पहले से रोकने के लिए डिज़ाइन की गई है। अमेरिका में न्यूयार्क और शिकागो में इसका उपयोग किया गया ह जापान में इंटरसेप्टर प्रणाली का उपयोग दूषित पानी को नदी में जाने से रोकने के लिए किया गया है। अनावश्यक वस्तुओं के निर्माण पर रोक लगनी चाहिए। जिसके कारण कम प्रदूषण हो।

केंद्र सरकार द्वारा एक योजना के तहत ऐसी समिति का गठन करना होगा। जो देश में बह रही सारी नदियों का परीक्षण और निगरानी कर सके। कठोर नियमों के पालनो के तहत प्रदूषण फैलाने वालों के उपर कार्रवाई की जानी चाहिए।पर्यावरण एक्टिविस्ट एवं सरकार द्वारा जन जागृति की जानी चाहिए। जिससे लोग अपनी आदतों को जान सके जो नदी को प्रदूषित कर रहे हैं।

The Yamuna, India's most polluted river
Source – The Gaurdian

क्या यमुना नदी की सफाई अभियान सफल हो रहे हैं?


यमुना की सफाई अभियान सफल नहीं रहे हैं। क्योंकि जब तक हम खराब जल को अच्छी तरह से साफ करके नदी में नहीं छोड़ देते, तब तक यह संभव नहीं है। आपको खबरों में देखते होंगे की सीवेज वाटर नदी में छोड़ा जा रहा है और सफाई भी शुरू है। यह संभव नहीं है। दिल्ली और केंद्र सरकार द्वारा यमुना को साफ करने के लिए आश्वासन दिए गए हैं। लेकिन अब तक यमुना का प्रदूषण बढ़ता ही गया है।

यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिए हैं?


नवंबर 2024 में आगरा नगर निगम को सुप्रीम कोर्ट ने 58.39 करोड़ का जुर्माना लगाया है। नगर निगम के द्वारा अनौपचारिक अपशिष्ट को सीधे नर्मदा नदी में छोड़ा जा रहा था। इसी महीने के एक जनहित याचिका में छठ पूजा को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने 1000 तरीके बताएं जिससे नर्मदा को दूषित न करके छठ पूजा की जा सके। नर्मदा में छठ पूजा करने की इजाजत नहीं दी। इसी के साथ समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सरकार को प्रदूषण को लेकर फटकार लगाई जाती है।

FAQ

यमुना नदी क्यों प्रदूषित हो रही है?

यमुना नदी का प्रदूषण मुख्य रूप से औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू सीवेज, प्लास्टिक कचरा, और कृषि से निकलने वाले रसायनों के कारण हो रहा है। जो नदी के पानी की गुणवत्ता को घटाते हैं।

यमुना नदी का प्रदूषण किन क्षेत्रों में अधिक है?

यमुना नदी का प्रदूषण मुख्य रूप से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अधिक है, जहां बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और कृषि गतिविधियां होती हैं।

यमुना के प्रदूषण से किन समस्याओं का सामना हो रहा है?

यमुना के प्रदूषण से जल की गुणवत्ता में गिरावट, जल जीवन के लिए खतरा, पर्यावरणीय असंतुलन, और स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

यमुना नदी का महत्व क्या है?

यमुना नदी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है, जो कृषि, जल आपूर्ति, और धार्मिक महत्व के लिए महत्वपूर्ण है।

यमुना के प्रदूषण को रोकने में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

यमुना के प्रदूषण को रोकने में सबसे बड़ी चुनौती है बड़े पैमाने पर सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट का नदी में गिरना। इसके अलावा, नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की देखभाल और समाज में जागरूकता की कमी भी एक बड़ी समस्या है।

क्या यमुना नदी में प्रदूषण के कारण जल जीवन की स्थिति खराब हो रही है?

हां, प्रदूषण के कारण यमुना नदी के जलजीवों जैसे मछलियों और अन्य जलीय जीवन की स्थिति बहुत बिगड़ चुकी है। इसके अलावा, नदी में जल की गुणवत्ता इतनी खराब हो गई है कि यह पीने योग्य नहीं रह गई है, और इससे मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं।

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