Gandhiji dream village: कैसे थे गांधी जी के सपनों के गांव ?

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Gandhiji dream village: हमारे देश और हमारे समाज की काया पलट करने के लिए गांधी जी ने एकदम बुनियादी ढंग से सोचा था। ग्राम विकास सुधार पर गांव की हर समस्या पर उन्होंने सबसे अधिक जोर दिया है। वह कहां करते थे कि हिंदुस्तान शहरों में नहीं गांव में बसता है। शहर भी जी रहे हैं और टिके हुए हैं गांव के आधार पर ही। उनका कहना साफ था हिंदुस्तान गांव पर टिका हुआ है।

इसलिए उन गावों का विकास करना हमारा प्रथम दायित्व है। उन गांव वालों को शहर आने की भी जरूरत नहीं है काम करने के लिए वह अपना उद्धार खुद ही कर सकते हैं। आरोग्य की दृष्टि से देखा जाए तो गांव की स्थिति बहुत दयनीय और खराब हालत में थी। आरोग्य के लिए आवश्यक और आसानी से मिल सकने वाला ज्ञान का अभाव हमारी गरीबी का एक सफल कारण है ऐसा उनका मानना था। भारत के हर गांव में अच्छी शिक्षा का प्रयोजन करना उनका मानना था। वे कहते थे कि हमारे अधिकांश गांव उस जगह पर बसे हैं जहां पर गांव वाले गंदगी फेंकते हैं और सारे खाद का ढेर भी लगाते हैं। यानी कि जहां पर वह रहते हैं वहीं पर गंदगी भी बड़ी मात्रा में फैलाते है।

वह कहते थे कि ग्राम सेवक को गांव वालों को इकट्ठा कर पहले तो उन्हें उनका धर्म समझाएं और तत्काल उनमें से स्वयंसेवक मिले या ना मिले उसे स्वयं सफाई का काम शुरू कर देना चाहिए उसे गांव में से हावड़ा टोकरी झाड़ू आदि चीज झूठ कर लेनी चाहिए।

गांधी जी अक्सर चाहते थे कि हर इंसान को अच्छी शिक्षा लेने के लिए उत्सुक होना चाहिए इससे यह होगा कि उसे अपनी परिवार की आरोग्य की अपने उद्योग की सही देखभाल की जा सके।

आजकल आप कई गावों में देखते हैं की सुखा और गीला कचरा अलग-अलग रखा जाता है । उसके लिए लंबा चौरस बड़ा गड्ढा किया जाता है और उसमे अलग-अलग कचरे का विवरण किया जाता है इस बात का जिक्र करते हुए गांधी जी  कहते थे, यदि ग्रामवासी इस चीज को इस प्रक्रिया को समझ लेंगे तो फिर अपने आप उसे चीज में सफल होती भी दिखाई देंगे।

लेकिन पूरे भारत में कुछ गिने-चुने ही गांव है जो इस तरीके से कचरा का निवारण करते हैं।

ऐसे अपने-अपने गिले कचरों का हम निवारण करें तो हमारे खेत में उसका उपयोग मिट्टी की उपजता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।

गांधीजी के मन की शाला और अस्पताल

वह नहीं चाहते थे कि गांव में कोई अस्पताल हो बल्कि  उनका मानना यह था कि गांव का दवाखाना गांव की शाला हो और गांव का पुस्तकालय भी वही होगा। रोग हर गांव में होते है। वाचनालय हर गांव में होना चाहिए, शाला तो होनी ही चाहिए। इन तीनों के लिए अलग-अलग मकान की बात सूची जाए, तो जान पड़ेगा कि सारे गांव की पूर्ति के लिए करोड़ों रुपए चाहिए और बहुत समय लग जाएगा। इसलिए हमें लोक-शिक्षण और ग्राम सुधार का विचार करते हुए अपने देश की इतिंहा दर्जेकी की गरीबी का खयाल रखना ही पड़ेगा।

गांव की जल व्यवस्था

उन दिनों में बहुत से गांव में एक ही तालाब होता था। जिसमें पशु पानी पीते थे आदमी नहाते, धोते थे बर्तन मांजते और कई लोग तो उसे पानी को पीते भी थे। ऐसे पानी में जहरीले कीड़े पैदा हो जाते हैं और इस पानी के पीने से हैजा आदि बीमारियां बड़ी जल्दी फैलती है।(हैजा एक अचानक होने वाली बीमारी है जो तब होती है जब कोई व्यक्ति विब्रियो कोलेरा बैक्टीरिया युक्त भोजन या पानी निगल लेता है)

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वे कहते थे कि पीने के पानी के तालाब में बर्तन या कपड़े कभी नहीं धोने चाहिए। इसके दो उपाय है एक तो यह की सब लोग अपने घर पानी लेकर जाकर वही धोये और दूसरा यह है कि तालाब से पास एक टंकी रखी जाए उसमें सब अपने हिस्से का पानी भर दे और गांव वाली इस पानी का उपयोग करें । गांव वालों में आपस में सहयोग और परोपकार  होने पर ही यह संभव है ऐसा उनका मानना था। हर आदमी जो काम करें तो थोड़े खर्चे में टंकी और हाउस भरा जा सकता है। कपड़ा धोने की जगह पानी गिरने से कीचड़ हो जाता है, इसलिए वह हिस्सा पक्का बना लेना चाहिए पीने के पानी भरने के बर्तनों को बाहर साफ करके ही तालाब में डूबाना चाहिए। ऐसी सुविधा कर लेनी चाहिए कि जिससे पानी भरने वाले के पैर पानी में ना पड़े यह एक स्थिति की बात हुई कितने ही गांव में एक से अधिक तालाब होते हैं या बनाए जा सकते हैं वहां पीने का तालाब अलग ही होना चाहिए।

             ‘भारत सात लाख गाँवों में बसा है।’
                  ‘ किसान जगत का तात् है। ‘
                                                              ~  गांधीजी

वे गांव से जुड़े हुये थे। उन्होंने  कई साल महाराष्ट्र के वर्धा जिले के शेगाव गांव में बताएं। वह हमेशा से ही सत्य के साथ रहते थे। अहिंसा उनका धर्म था।

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