सुबह से लेकर रात तक जिस बोली या भाषा का हम उपयोग करते है कभी आपने थंडे दिमाग से स्वयं अपनी ही ही भाषा को सुना है? आपको इसमे किसी प्रकार की कमी नजर आ रही है ? जिस समय आप खुद के बोले गये शब्दों को सुनेंगे तब आपको ये दिखाई देगा की आप की जो भाषा है। वह काफी बदल चुकी है। काफी मतलब इसमें ज्यादा तर शब्द हमारी बोलीभाषा के है ही नही।
भारत की भाषाएं कैसे बदल रही है?
भारत में पिछले ६० सालों में देखा जाये तो २०० से भी ज्यादा भाषाएं लुप्त हो चुकी है याने की उनका नामोनिशान मिट चुका है । यह लुप्त हुई भाषा ये बोलने वाले लोग आज भी रहते है। काम मिलने की सहायता से वह उस प्रदेश की मुख्य भाषा को सीख लेते हैं। लेकिन वह लोग अपने स्तर पर भाषा को जिंदा रखने की हर संभव कोशिश करते है । जैसे की गिसारी,कोल्हाटी,वडारी,गोल्ला जो कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई सारे इलाकों/प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषा है। जब पारंपारिक तरीको से वह अपना गुजारा करने के लिए सक्षम नही होते है । तब वे शहर में या किसी अन्य जगहों में जाकर काम करते हैं। तब उस काम को पूर्ण करने हेतु उस प्रदेश की मुख्य भाषा को सीख लेते है और इसी के साथ सुरुवात होती है एक लुप्त होने वाली भाषा की कहानी।
भाषाओं में बदलाव कैसे आता है ?
भाषाओं मे बदलाव कैसे आता है एक उदाहरण से मै आपको समझना चाहता हु, समझिये की मेरी मातृभाषा मराठी है। मराठी के निर्माण से लेकर आज तक की कहानी देखा जाये तो उसमे काफी बडे बदलाव आ चुके है। ११वीं शताब्दी में रहें संत ज्ञानेश्वर महाराज के साहित्य के बारें में बात की जाये तो उसमे काफी उलझा देने वाले शब्द है । जो आज के समय में समझ पाना कठीण है लेकिन अगर उस समय की बात की जाये तू उस समय के लिये वह शब्द स्वाभाविक थे, सरल दथे उनमें समझ आने वाली स्थिति थी। आज के समय में हमारी बोली जानेवाली भाषा देखे तो वह काफी सरल और आसान हो चुकी है।
भारत की आठवी अनुसूचित से संबंधित संवैधानिक प्रावधान प्राप्त 22 भाषाओं में मराठी,पंजाबी,नेपाली,उडिया,तमिल, तेलगू ,संताली, असमिया, बांग्ला, डोगरी, सिंधी, उर्दू, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, हिंदी, कन्नड, कश्मीरी, गुजराती, बोडो और संस्कृत शामिल है। इन भाषाओं में भी कई बदलाव आ चुके हैं या आने वाले हैं।
पापुआ न्यू गिनी में कैसे बोली जाती है ८०० से भी ज्यादा भाषाएँ?
एथेनोलाॅग जो जीवित भाषाएँ और उनके आंकड़ो की जानकारी प्रदर्शित करता है उसके अनुसार ,पापुआ न्यू गिनी में ८४० भाषाएँ आज भी बोली जाती है। जिसमें, इंग्लिश, टॉक पीसीन, हिरी मोटू, पापुआ न्यू गिनी साइन लैंग्वेज( English, Tok pisin, Hiri motu, Papua New Guinean Sign Language)जैसी भाषाएँ ज्यादातर बोली जाती है। पापुआ न्यू गिनी देश पर्वतों से घिरा हुआ है।इसमें उबड़ खाबड़ इलाके,घने जंगल ऐसा भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण अनेक समुदायों को एक दूसरे से अलग कर दिया और इसी के साथ नई भाषाएँ विकसित हुई। हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस देश की जनसंख्या १ करोड़ ४० लाख के करीब है। इस देश का भौगोलिक क्षेत्र ४५२,८६० वर्ग किलोमीटर है।जो भारत देश के राजस्थान और तेलंगाना राज्य से थोड़ा कम इसका क्षेत्रफल है। यह छोटा सा देश भाषाओं के मामले में अनेक विविधताओं को दर्शाता है।
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हमारी मुख्य भाषाएँ बदलने के क्या कारण है?
भाषाओं में परिवर्तन इस बात का संकेत है कि उन भाषाओं में उपलब्ध पुस्तकें कम पढ़ी जा रही हैं।जिससे भाषा के मुल शब्दों का हमारे उपर कम प्रभाव पडता हैं । जो अंग्रेजी शब्द हम फिल्मों में और अपने आस-पास के लोगों के माध्यम से सुनते हैं। उनका हमारे बोलीं जाने वाली भाषा पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने लगता है और क्योंकि हम उन्हीं शब्दों को अपने दैनिक जीवन में उपयोग करना शुरू कर देते है।यहीं कारण है कि वह भाषा हमारी भाषा को काफी ज्यादा प्रभावित करती है और कर रहीं हैं। वह भाषा कोई और नहीं बल्कि अंग्रेजी है जिसका हमारी भाषा पर सबसे ज्यादा प्रभाव है। भारत में हर भाषा पर अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ता क्यों जा रहा है?
१. भारत में मातृभाषाओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। भारत में कई सारे लोगों को अंग्रेजी भाषा में आर्थिक उन्नति दिखती है और कई मात्रा में यह सही भी है। इसका नतीजा लोग अंग्रेजी सिखते हैं। लेकिन बात जब लौट कर आने की होती है तो कई सारे लोग अपना रास्ता भूल जाते हैं। आसान भाषा में कहां जाए तो कई सारे मातृभाषा के आसान शब्दों को लोग भूल जाते हैं। अगर उन शब्दों को फिर से याद करना हो तो हमें अपनी भाषा की किताबें पढ़नी होगी यह एक सरल उपाय है।
२. भारत के ऊपर २०० साल से ज्यादा अंग्रेजों का शासन रहा। इन्हीं सालों में अंग्रेजी की जड़ भारत में मजबूत हुई।
३. कंप्यूटर, मोबाइल इन जैसे उपकरणों में अंग्रेजी का बढ़ता उपयोग।
४. प्रतिष्ठा के लिए भारत के लोग अंग्रेजी का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।
हम भाषाओं का उपयोग जानकारी के आदान-प्रदान के लिए करते है। भारत में हर भाषा में विविधता उपलब्ध है, हम उन्हें करीब से देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं और विभिन्न बोलियों के माध्यम से हम अपनी मातृभाषा को अभिव्यक्त भी कर सकते हैं। यही वास्तविक विविधता है। भाषा हमारी मां के समान है।यह हमें जन्म के समय से मिलती है, इसीलिए उसे मातृभाषा कहाँ जाता है । इसे संरक्षित करना हमारा दायित्व है,कर्तव्य हैं। आज नई-नई चीजों का आविष्कार हो रहा है। उन चीजों के नाम भी हमारी भाषा में नहीं हैं ।मातृभाषा हमारे लिए स्वाभिमान और दूसरी भाषा हमारे लिए कला होनी चाहिए।हम एक एक शब्दों की जगह अंग्रेजी के शब्द लेते जा रहे हैं। लेकिन अगर हम कुछ साल पहले की चीजों पर नजर डालें तो उनके नाम हमारी ही भाषा में थे। हमारी पीढ़ी अगर १ हजार शब्दों का उपयोग नहीं करेगी,तो अगली पीढ़ी ५००० अन्य शब्दों का उपयोग नहीं करेगी। ऐसे ही भाषाओं की जड़े सूख जाती है और सालों से हरा भरा रहा हुआ पेड़ सूख जाता है। इसका जिम्मेदार हर वो मनुष्य है जो अपनी भाषा में अंग्रेजी के शब्द लेता है। जिन शब्दों का विकल्प हमारी भाषा के शब्दों में है।