हानिकारक रसायन आने वाली पीढ़ियों पर कैसे प्रभाव डालते हैं ?|Insecticides, pesticides and herbicides|

18वीं सदी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई, नए-नए आविष्कार हुए और मानव जीवन में क्रांति आई। आज अगर हम देखें तो हर क्षेत्र में हर काम में नवीनतम तकनीकें उपलब्ध हैं। फिर कृषि क्षेत्र इसमें कैसे पीछे रह सकता है। भारत में बारिश शुरू हो गई है। बारिश भी अच्छी मात्रा में हुई है और किसान अपनी फसल से अच्छी पैदावार की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन इसमें एक बाधा है हानिकारक रसायन।

१.कृषि में हानिकारक रसायन और उर्वरकों का उपयोग कब किया जाता है?

इसके लिए हम भारत के महाराष्ट्र राज्य के लातूर जिले का उदाहरण ले रहे हैं। बारिश के बाद लातूर जिले में सोयाबीन की खेती बड़ी मात्रा में की जाती है। बारिश के बल पर बड़ी मात्रा में घास जमीन पर आ जाती है। घास की मौजूदगी में सोयाबीन लगाने के बाद फसल की वृद्धि रुक ​​जाती है और पैदावार में भी बड़ी कमी आती है। इसके लिए किसान बड़ी मात्रा में तृणनाशी का छिड़काव करते हैं। बारिश के बाद पहली बार इसका छिड़काव किया जाता है। बीज बोने से पहले अलग-अलग तरह की दवाएँ भी डाली जाती हैं ताकि वे तेजी से बढ़ें और फंगल संक्रमण से भी बचें।जब सोयाबीन अच्छी तरह से उग जाए। तब उस पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। साथ ही, फसल के फूलों को झड़ने से बचाने के लिए भी बड़ी मात्रा में छिड़काव किया जाता है।

इस तरह से कीटनाशकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है और इससे मिट्टी की उर्वरता बहुत हद तक कम हो जाती है। ऐसी दवाएँ मिट्टी को कमज़ोर बनाती हैं। चूँकि खरपतवारनाशकों को सीधे मिट्टी में डाला जाता है, इसलिए खतरनाक रसायन मिट्टी में बड़ी मात्रा में मिल जाते हैं और मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर देते हैं। मानसून की फसल के लिए इतना ही छिड़काव किया जाता है और फिर सर्दियों की फसलों के लिए भी यही छिड़काव बड़ी मात्रा में किया जाता है और अलग-अलग दवाएँ भी इस्तेमाल की जाती हैं।

मिट्टी को लेकर दुनिया के सामने लगातार अलग-अलग रिपोर्ट आ रही हैं। एक अध्ययन के अनुसार, कई रासायनिक छिड़काव स्थलों पर मिट्टी के पचास साल से भी ज़्यादा समय तक उपज न देने का अनुमान है। लेकिन भारत सरकार के साथ-साथ लोग भी इस मामले पर गंभीर कदम उठाने को तैयार नहीं हैं।

आज फसल बोने से लेकर कटाई तक दवाओं और हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। उसी तरह से इसका असर मानव जीवन पर भी पड़ता है। जब बच्चा पैदा होता है, तो उसे भी दवा की ज़रूरत पड़ रही है। उसका शरीर भी इस मिट्टी की तरह कमज़ोर दिख रहा है। हम यह भी कह सकते हैं कि ऐसे रसायनों के कारण हमारा भोजन भी रासायनिक रूप से दूषित हो रहा है। अगर हम अच्छा जैविक भोजन खाएँगे, तभी हमारा जीवन रोग मुक्त और सुखद होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।

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