भारत में हथकरघा कितना बड़ा है?|Handloom day in India 2024|

Handloom day in India 2024|

भारत में आज का दिन हथकरघा दिन के रूप में मनाया जाता है। हथकरघा में वस्त्र को बिना बिजली की सहायता से कपड़ा बुनने के लिए किया जाता है।

पुरानी परंपरा एवं कौशल्यों को टिकाए रखने हेतु हथकरघा को देखा जा सकता है। नई-नई टेक्नोलॉजी आने के बाद भी आज यह उद्योग अभी भी टिका हुआ है।

20वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश सरकार ने भारत से बंगाल अलग करने का निर्णय लिया था, उसके खिलाफ जाकर भारत के कई नेताओं ने स्वदेशी चीजों का इस्तेमाल करने के लिए स्वदेशी आंदोलन की नींव रखी थी।

हथकरघा दिन क्यों मनाया जाता है?

भारत के पंतप्रधान नरेंद्र मोदी ने आज ही के दिन 7 अगस्त 2015 को स्वदेशी हथकरगा और खादी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए भारत में प्रथम हथकरघा दिवस मनाया। 1905 में इसी दिन भारत में विदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल न करके भारत में बनी वस्तुओं का उत्पादन का इस्तेमाल किया जाए इसके लिए स्वदेशी आंदोलन की घोषणा हुई थी।

भारत में हथकरघा की कैसी स्थिति है?

हथकरघा भारत में 30 लाख से अधिक लोगों को अधिक परिवारों को रोजगार देने में सहायता करता है। इसका ज्यादातर उपयोग ग्रामीण इलाकों में किया जाता है।
आधुनिकता की इस युग में हथकरघा उद्योग बहुत ही बिकट स्थिति में है। अत्याधुनिक यंत्रों के साथ कपड़ा उद्योग इस स्पर्धा में बहुत आगे निकल गया है। देखा जाए तो हथकरघा में समय बहुत ज्यादा लगता है और आज की युवाओं की बात की जाए तो वह ऐसा कपड़ा पहनना पसंद नहीं करते, इसी का परिणाम यह उद्योग आर्थिक और सामाजिक स्तर पर बहुत ही बिछड़ा हुआ है। हालांकि यह अभी भी बहुत सारी परिवारों को रोजगार प्रदान करने का काम करता है, लेकिन लोगों में स्वदेशी कपड़ों की तरफ जागरूक नहीं है। स्वदेशी वस्तुओं एवं कपड़ों के साथ हमें एकता दिखाने की जरूरत है। तभी हम इस उद्योग को बड़ी मात्रा में सफल बना सकते हैं। जब से अर्थव्यवस्था को बढ़ाने की बात होती है तो अत्याधुनिक यंत्रों को भूल जाना असंभव है। लेकिन हमारी संस्कृति और सभ्यता और कौशल्य को टिकाए रखने के लिए हथकरघा का बहुत बड़ा हाथ है। यह कपड़ा बुनने के लिए समय जरूर लेता है। लेकिन उसमें एक भाव होता है, भाव होता है प्रेम का, भाव होता है अपनेपन का,भाव होता है स्वदेश का। लेकिन बाजार में नए-नए वस्तुएं आने के कारण पुरानी वस्तुओं को लोग भूल जाते है। नई चीजों को अवगत कर लेते है। लेकिन उसका प्रभाव सामान्य परिवारों के लोगों पर पड़ता है ।

क्या भारत पूर्ण स्वरूप से स्वदेशी वस्तुओं से भरपूर है?

आज भारत में देखा जाए तो ज्यादातर बैटरीज ताइवान में बनाई जाती है ताइवान से आती है खिलौने एवं छोटे-मोटे इलेक्ट्रॉनिक खिलौने चीन से आयात करते हैं।भारत सबसे ज्यादा चीन से वस्तुओं का आयात करता है। साल दर साल भारत चीन से बड़े पैमाने पर सामान खरीदना है। भारत में हालत ऐसी है कि पड़ोस में बिकने वाले मिट्टी के बर्तन या मिट्टी का दिया हमारे घर तक नहीं आता, स्वदेश का है अपनी मिट्टी से बना हुआ है ,लेकिन दूर दराज बैठे चीन में बनी हुई लाइटिंग या घर सजाने के साधन हमारे घर में सबसे पहले आ जाते है।चाहे उनकी आयु कल तक ही क्यों ना हो हम उन्हें बड़े पसंद से खरीदते हैं। भारत में मध्यवर्गीय लोग अपनी कमाई का ज्यादातर प्रतिशत हिस्सा ऐसे ही वस्तुएं खरीदने के लिए लगाते हैं। कमाई ही नहीं बल्कि खरीदने के लिए समय भी दे देते हैं।आज हम किसी भी प्रकार की वस्तुओं चीन से मंगवाते हैं। चम्मच से लेकर ताले तक प्लास्टिक के खिलौने से लेकर खेल की वस्तुओं तक हम चीन में बना हुआ माल खरीदते हैं। हथकरघा एक स्वदेशी जरूर है लेकिन वह विदेशी नहीं है इसीलिए भारत के लोग इसे नहीं खरीदते होंगे ऐसा मुझे प्रतीत होता है। यही धारणा भारतीय लोगों की है जब बदलाव लाने की चाह हमें जब होती है,तब उसे किसी दिन के रूप में याद रहने की जरूरत नहीं। उसे पहनने से ही हम उसे उसका जो मिलने वाला सम्मान है, वह दिला सकते हैं।

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भारत में हथकरघा कितना बड़ा उद्योग है?

भारत पूरी दुनिया में हद करगी के लिए जाना जाता है भारत में 24 लाख के करीब करघे है। यह उद्योग बड़े से लेकर छोटे शहरों तक और ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में पीढ़ी दर पीढ़ी चल आ रहा है यह उद्योग की खास बात यह है कि इसकी विशेष शैली अगली पीढ़ी के हाथ में दी जाती है जिसकी सहायता से वह अपना रोजगार प्राप्त कर सके

हथकरघा जनगणना 2019-20 के अनुसार भारत में लगभग 35.22 लाख हथकरघा से काम करने वाले लोगों की संख्या है जिनमें से देखा जाए तो 25.46 लाख महिलाएं जिनकी इस क्षेत्र में हिस्सेदारी देखी जाए तो 72.629 प्रतिशत थी यह क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 30 लाख बुनकरों को रोजगार देता है।

भारत में 2023-24 में हथकरघा निर्यात 1800 करोड़ से भी ज्यादा हुआ है।

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