ecosystem for sustainable living in hindi|

ecosystem for sustainable living in hindi : जिस मनुष्य की आवश्यकता कम है, उस मनुष्य को कई सारी दुखों से छुटकारा मिलता है। इंसान की कई सारी समस्याएं तो संसाधनों को झेलना, संवारना और उसकी निगरानी करने में ही आती है। तो क्यों ना हम आज इसी मुद्दे पर बात करें, जो आपके एक दर्जदार जीवन को बढ़ावा दे सके। एक ऐसा जीवन जो संसाधनों कमी के साथ जीया सकता है और टिकाऊ भी है। आज इस जीवन की आवश्यकता हर इंसान को है। जिस समय में पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा हो।

Sustainable living का अर्थ क्या है?

Sustainable living को हिंदी में टिकाऊ जीवन कहा जाता है। सस्टेनेबल लिविंग का मतलब कम से कम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके जीवन जीना होता है। जिसमें पर्यावरण का पूरी तरह से खयाल रखा जाता है और किसी प्रकार की हानि न करने का निर्णय होता है। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम करके अगले पीढ़ी को भी वह संसाधन उपलब्ध हो जाए इसको खास तौर पर ध्यान में रखा जाता है।

ecosystem for sustainable living in hindi

सस्टेनेबल लिविंग के कौन-कौन से प्रमुख सिद्धांत हैं?

अगर आपने सस्टेनेबल लिविंग जीवन जीने का निर्णय किया है तो इसके कुछ प्रमुख सिद्धांत है जो आपको अपने जीवन में उतारने होंगे।
१. अनावश्यक वस्तुओं को उपयोग में न लाना।
२. पुरानी वस्तुओं का उपयोग में लाना किसी और काम के लिए जैसे कपड़े, डिब्बे
३. घर में जो भी जैविक कचरा( सब्जियों के छिलके) है, उसको खाद में परावर्तित करना। जिसके पोषक तत्वों का उपयोग करके हम अपने घर में ही सब्जीयाॅं उगा सकते है।
४. आवश्यकताओं से अधिक किसी भी चीज का उपभोग नही करना जैसे की पानी, बिजली, खाना, वाहनों और अन्य अनावश्यक संसाधनों से भी बचकर रहना होगा।
५. पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को बदलने का प्रयास कीजिए उसकी जगह सौर ऊर्जा का उपयोग कीजिए।
६. हमारे इलाके के वन्यजीवों, पौधों, और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे।
७. ऐसे संसाधनों का उपयोग करना जिनके माध्यम से कम से कम ग्रीनहाउस गैसेस उत्पन्न होती हो।
८.रसायन-मुक्त, प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग करना और स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करना। जो हमें कई सारी बीमारियों से बचाता है।
९. जैविक खेती को वास्तविकता में उतारना होगा। स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देनी होगी।
१०. ऊपर बताए गए सभी तरीके आप अपने जीवन में भी उतार सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संरचनाओं के साथ किया जाने वाला खिलवाड़ उस पर जागरूकता करनी होगी।जैसे-जैसे आप इस विषय के बारे में और पढ़ेंगे और जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करेंगे, वैसे-वैसे आपको समझ आएगा कि कौन सी चीजे हमारे लिए उपयोगी है और कौन सी नहीं है।हम जो कर रहे हैं या हम जो करने जा रहे हैं, क्या वह पर्यावरण के लिए अनुकूल है याक् नहीं इसकी समझ प्राप्त होती है।

प्लास्टिक का कम उपयोग कैसे टिकाऊ जीवनशैली को बढ़ावा देता है?

ecosystem for sustainable living in hindi

प्लास्टिक के अविष्कार के बाद उसके निर्माण को इतना ज्यादा बढ़ावा दिया गया की प्लास्टिक का उपयोग हर क्षेत्र में हर इंसान द्वारा किया जानें लगा है। आज दुनिया में जिस स्थान पर इंसान की पहुंच नहीं है, वहां पर प्लास्टिक का अस्तित्व है। (किसी आईलैंड पर इंसान अभी तक नहीं गया है वहां पर समुद्र के माध्यम से प्लास्टिक पहुंच गया है, समुद्र की गहराई में प्लास्टिक समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचा रहा है) प्लास्टिक सस्ता तो बहुत है लेकिन उसका उपयोग हर क्षेत्र में होने की वजह से वह इंसानों के साथ-साथ कई सारे वन्य जीवों के शरीर में पाया गया है। सूखी पत्तियां, पशु से निकलने वाला गोबर और कृषि क्षेत्र से निकलने वाली डीकंपोजेबल कचरे के साथ हम कई वस्तुएं बना सकते हैं। जिससे प्लास्टिक का उपयोग कम हो सकता है और बीमारियों से भी राहत मिल सकती है।

सस्टेनेबल लिविंग में किस प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाना चाहिए?

स्थानीय फलों का और सब्जियों का सेवन

आजकल देखा जाए तो सब्जियों में फलों में हाइब्रिड का उत्पादन सबसे ज्यादा लिया जा रहा है। जिसका असर हमारे स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है उसके साथ-साथ वह हमारे शरीर को आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्णता नहीं करता है‌। उत्पादन को मध्य नजर रखते हुए स्थानीय फलों और सब्जियों को विशेष महत्व नहीं दिया जा रहा है। जबकि स्थानीय लोगों के लिए स्थानीय आहार ही बहुत महत्वपूर्ण है। जिनकी उत्पादन के लिए बहुत सारे संसाधनों के आवश्यकता ही नहीं है।

ताजा आहार लेना होगा


ताजा आहार हमारे शरीर के लिए फायदेमंद होता है। जो आहार जल्दी खराब हो जाता है वह हमारे सेहत के लिए अच्छा होता है। हमें स्थानीय भोजन को गृहण करना होगा। ऐसी सब्जियां फसलों का सेवन करें जो हमारे स्थानीय वातावरण के अनुसार आसानी से उग जाती हो। हमें ज्यादा प्रक्रिया कीए गए आहार से बचना होगा। बाजार में पैकेजिंग फूड्स की संख्या बहुत बढ़ गई है जिनसे हमें दूर ही रहना चाहिए। उसमें कई तरह के प्रिजर्वेटिव्स, कलरिंग एजेंट और फ्लेवरींग एजेंट मिलाए जाते है। जिनकी पैकेजिंग की वजह से बहुत सारा प्रदूषण होता है।

सस्टेनेबल लिविंग में किस प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं किया जाना चाहिए?

मांस का सेवन न करना

आज के समय में पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के लिए मांस का सेवन बहुत ही ज्यादा ग्रीनहाउस गैसेस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। मांस खाने के मामले में अमेरिका पहले स्थान पर आता है। जहां पर एक व्यक्ति हर साल 120 किलो मांस ग्रहण करता है। मांस के उत्पादन के लिए पशुपालन बहुत बड़ी मात्रा में कीया जाता है। उन पशुओं के आहार की पूर्ति के लिए बहुत सारी जमीन की आवश्यकता होती है। फिर उस जमीन के लिए जंगलों को काटा जाता है। मांस उद्योग में सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। अगर आप सस्टेनेबल लिविंग को जीना चाहते हैं, तो मांस का सेवन रोकना होगा। मांस की जगह हम पौधों पर आधारित आहार को अपना सकते हैं। जिनमें फल, सब्जियाँ, अनाज, नट्स शामिल है।

दूध उत्पादन

दुध उत्पादों का उत्पादन भूमि उपयोग के संबंध में चिंता पैदा करता है। दूध उत्पादन के लिए सिंचाई, पशुओं को जल व्यवस्था और सफाई प्रक्रियाओं के लिए भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। डेयरी फार्मिंग के लिए चरागाह और पशु चारा फसलें उगाने के लिए बड़े पैमाने पर भूमि की आवश्यकता होती है। डेयरी संचालन के विस्तार से अक्सर वनों की कटाई होती है और प्राकृतिक आवास कृषि भूमि में परिवर्तित हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जैव विविधता का नुकसान होता है और पारिस्थितिक तंत्र में बाधा होती है। दूध उत्पादन में जल और भूमि संसाधनों का गहन उपयोग हमारे पर्यावरण को और अधिक नुकसान पहुंचाए जान रहा है। बढ़ती आबादी की पोषण संबंधी मांगों को पूरा करने के लिए हमें दूसरे तरीकों को अपनाना होगा। डेरी फार्म में गायों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है, ना उन गायों को बछड़े का सुख मिल पाता है, ना ही उस बछड़े को उस गाय का दूध। अगर नर बछड़ा पैदा हुआ है तो 18 – 20 हफ्तों में उसकी हत्या की जाती है।अमेरिका में हर साल 4 करोड़ से अधिक पशुओं को मांस के लिए काटा जाता है। अगर आप दूध के सेवन को छोड़ रहे हैं, तो सोया दूध,बादाम दूध,चावल का दूध,नारियल का दूध एक विकल्प के तौर पर आपके सामने उपलब्ध है।

फास्ट फूड

फास्ट फूड एक ऐसा खाना होता है जो कम समय में बंनकर तैयार होता है। बाहर ऐसा ही खाना आसानी से मिल जाता है, ऐसे खाने में ज्यादातर मिलावट होने की आशंका रहती है। जो हमारे सेहत के लिए ठीक नहीं है। हमें ऐसे खाने का ज्यादातर सेवन नहीं करना चाहिए या ऐसा कुछ खाना है तो हमें घर पर ही बनाकर खाना चाहिए।

किस देश में सस्टेनेबल लिविंग को बढ़ावा दिया जा रहा है ?

जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले बड़ी समस्या को देखते हुए डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, आइसलैंड, कोस्टा रिका जैसे कई देश सस्टेनेबल लिविंग को बढ़ावा दे रहे है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करके पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। स्वीडन ने तो 2045 तक कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य रखा है। शिक्षा के माध्यम से यह देश सस्टेनेबल लिविंग को पूरे देश भर में हर नागरिक तक पहुंचने में सफल हुए हैं। इन देशों ने पर्यावरण पूरक उत्पादन, रीसाइक्लिंग नवीकरणीय ऊर्जा जैव विविधता का संरक्षण और शिक्षा के साथ पर्यावरण के महत्व को बढ़ावा दिया गया जिसकी वजह से यह देश बदलाव लाने में सफल रहे।

source – Anuj Ramatri

शहरों में टिकाऊ जीवन को कैसे अपनाया जा सकता है?

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शहरों में ग्रीन पार्क और ग्रीन बेल्ट का निर्माण करना होगा। शहरों को हर दिन हरा भरा रहने के लिए वहां के प्रशासन को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। घरों के ऊपर और बाल्कनी में बागवानी को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। शहर के अंदर चलने वाले सार्वजनिक वाहनों को मुफ्त या आधे दाम पर करना चाहिए‌। जिससे लोगों का सार्वजनिक वाहनों से आवागमन ज्यादा हो। कई सारे देशों में यह नीति कारगर साबित हुई है। जिससे ट्रैफिक की समस्या कम रहेगी और प्रदूषण की मात्रा भी कम हो सकती है। शहरों में साइकिल और पैदल चलने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

शहरों में पानी का उपयोग बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। दुनिया भर के ज्यादातर शहरों में देखा जाए तो, उपयोग में लाये गए पानी और गंदगी को नदी में छोड़ा जाता है। अगर उस पानी और गंदगी को साफ करके उसे नदी में छोड़ जाए तो नदी के तट पर जो जैव विविधता बसी है उनको ठेस नहीं पहुंचेगी।इस काम के लिए शिक्षा और जागरूकता बहुत ही महत्वपूर्ण है। लोगों के और प्रशासन के द्वारा।

क्या टिकाऊ जीवन शैली अपनाने से जलवायु परिवर्तन पर असर पड़ता है?

असर पड़ सकता है। यदि हमने सस्टेनेबल जीवन को अपनाया है, इसका मतलब जलवायु परिवर्तन में काफी सुधार आ सकता है। क्योंकि यह समस्या इंसानों की आबादी और उसके द्वारा किए जाने वाले उपभोग के कारण आ रही है। यदि इंसान सस्टेनेबल लिविंग को अपनाने में कामयाब हो जाए, तो यह प्रकृति मैं रहने वाले सभी जीवो एवं इंसानों के लिए भी सबसे अच्छी बात है।ऊर्जा की बचत, जल संरक्षण, कचरे का व्यवस्थापन, स्थानिक और जैविक खाद्य पदार्थों का सेवन पर्यावरण अनुकूल उत्पादन का उपयोग । अगर इस इसका हम पालन करते हैं, तो प्रकृति में पाए जाने वाले जीवों को घर मिल जायेगा और उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।

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