delhi pollution news : दिल्ली में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, और इस पर कई सवाल उठाए जाते हैं। लेकिन दिल्ली के हालात नहीं बदलते। आज दिल्ली की जनसंख्या 1.6 करोड़ से ऊपर है और इन सब लोगों पर वायु प्रदूषण का असर दिखाई दे रहा है। हर साल की तरह इस साल भी सर्दियां आ चुकी है और दिल्ली का प्रदूषण बढ़ गया है।कई सारे सवाल और उन सवालों के जवाब देते हुए मीडिया थक नहीं रही है। जिन नीतियों का उपयोग करके प्रदूषण को कम किया जा सकता है, उन नीतियों का सरकार द्वारा प्रयोग नहीं किया जा रहा है। तो हम शुरुआत से जानने का प्रयास करते हैं कि, दिल्ली की हवा और दिल्ली वालों का पर्यावरण के ऊपर दिल कितना साफ है ?
दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं?
वाहनों से निकलता उत्सर्जन
दिल्ली की वायु प्रदूषण में लगभग 40% हिस्सेदारी वाहनों की है। पिछले कुछ दशकों के आंकड़े देखें जाए तो 1994 में 23 लाख वाहनों की संख्या दिल्ली में दर्ज की गई, लेकिन आज के आंकड़ों के अनुसार राजधानी दिल्ली में 31 मार्च 2023 तक 79.5 लाख वाहन है। जिनमें से 20.7 लाख निजी कार्य पंजीकृत थी। अब देखा जाए तो राजधानी में वाहनों की कुल संख्या 1.2 करोड़ हो चुकी है। नए रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या देखें तो 2023 में 6.5 लाख से अधिक गाड़ियां दिल्ली में बिकी है।मतलब हर 2 दिन में करीब 3,565 गाड़ियों की बिक्री हुई है।जो पिछले 5 सालों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। 2016 के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में हर रोज 5.7 लाख वाहनों का बाहरी राज्यों से आवागमन होता था। आज यह आंकड़ा हमारी सोच से कई ज्यादा हो सकता है। इन वाहनों के द्वारा ईंधन जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर(जिसमें पीएम 2.5 और पीएम 2.10 जैसे कण शामिल है।) जिसके प्रभाव के कारण सांस लेने में दिक्कत,अस्थमा,फेफड़े,त्वचा और हृदय संबंधित बीमारियों का बढ़ना आम बात हैं। इससे पर्यावरण में पाई जाने वाली जैव विविधता को हानि पहुंचती है। जिसका विचार दिल्ली वाले नहीं करते।Air quality life index के अनुसार दिल्ली में रहने वाले हर एक व्यक्ति की औसतन आयु 11.9 साल से घट गई हैै।दिल्ली के कई इलाकों में सर्दियों के मौसम में एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से ऊपर जाता है। जो हवा की सबसे खराब गुणवत्ता है।
औद्योगिक स्रोत
दिल्ली-एनसीआर जिसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहां जाता है। इस दिल्ली एनसीआर में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा के कई जिले शामिल है। इस क्षेत्र में बसे उद्योग दिल्ली में दूषित हवा की मात्रा बढ़ाते है। इस इलाकों में कई छोटे,बड़े उद्योग बसे हैं।इन उद्योगों की संख्या जानना मुश्किल है। लेकिन दिल्ली की हवा खराब करने में यह एक बड़ा स्रोत है।दिल्ली-एनसीआर में औद्योगिक गतिविधियों का बड़ा हिस्सा है।जिसमें विभिन्न प्रकार की फैक्ट्रियाँ शामिल हैं, जैसे कि मैन्युफैक्चरिंग, टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और पैकेजिंग अन्न।
दिल्ली-एनसीआर में ओखला, नजफगढ़ रोड, डीएलएफ कीर्ति नगर, मोहन को-ऑप,उद्योग नगर रोहतक रोड,झंडेवालान फ्लैटेड फैक्ट्री,शाहजादा बाग,राजस्थान उद्योग नगर ,एसएमए को-ऑप. इंडस्ट्रियल एस्टेट, जैसे कई औद्योगिक क्षेत्र शामिल है।
औद्योगिक क्षेत्र के कुछ प्रमुख स्रोत :
मैन्युफैक्चरिंग उद्योग
मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों से निकलने वाला धुआं और रसायन में सल्फर डाइऑक्साइड(SO₂), नाइट्रोजन ऑक्साइड(NOₓ) और पार्टिकुलेट मैटर शामिल है। जो ग्रीनहाउस गैसेस है और वह वायु प्रदूषण को बढ़ाने में सहायता करते हैं
टेक्सटाइल उद्योग
टेक्सटाइल फैक्ट्री में उपयोग होने वाले रसायन और रंग वायु और जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
ऑटोमोबाइल उद्योग
ऑटोमोबाइल निर्माण और असेंबली प्लांट से निकलने वाली उत्सर्जन वायु की गुणवत्ता को कम कर देते हैं।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग
खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों से निकलने वाले धुएं और गंध भी वायु प्रदूषण का हिस्सा हैं।
कचरे को जलाना
दिल्ली में कचरा और कूड़ा जलने के बारे में दिल्ली अग्निशामक सेवा को कॉल आती है। इस साल आने वाली कॉल में 62% की वृद्धि हुई है। इस साल कुडा जलाने के बारे में 2,425 कॉल प्राप्त हुई है। जबकि पिछले साल 1,498 कॉल प्राप्त हुई थी। पिछले साल के मुकाबले यह आंकड़ा 927 से बढ़ा है। दिल्ली के लैंडफिल्स में आग लगने की घटनाएं हमेशा घटती रहती है। जिसके कारण धुएं के बादल तैयार होते हैं। इन लैंडफिल्स में सड़ने वाले पदार्थ जब जाते हैं,तो आग अपने आप लगने की संभावना ज्यादा रहती है। क्योंकि सड़ने वाले पदार्थ गर्मी पैदा करते हैं। यह पदार्थ दबे रहने के कारण गर्मी बाहर निकल नहीं पाती। जिसके कारण यह गर्मी आग लगने तक बढ़ती है। गलती से सिगरेट फेंकना या जानबूझकर आग लगाना ऐसे कचरे के जलने का कारण है। दिल्ली में हर दिन 11000 टन कचरा लैंडफिल में जाने के लिए निकलता है। उसमें से 8000 किलो टन कचरा सॉलिड वेस्ट होता है। जबकि 800 से 1000 टन कचरे को जैविक खाद में परावर्तित किया जाता है।
कंस्ट्रक्शन गतिविधियां
दिल्ली जैसे बड़े शहरों में कंस्ट्रक्शन गतिविधियां बड़ी जोरों से शुरू रहती है। जिसके कारण पार्टिकुलेट मैटर(PM) जैसे धूल और मिट्टी के कणों की की मात्रा बहुत ज्यादा हवा में फैलती है। दिल्ली एनसीआर में हवा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए GRAP(Graded Response Action Plan) को लागू किया जाता है। जो चार चरणों में विभाजित है। जब दिल्ली में प्रदूषण(AQI) की मात्रा बहुत ज्यादा होती है तो कंस्ट्रक्शन के सारे कामों को GRAP के चरण III के तहत रोक दिया जाता है। जब प्रदूषण कम होता है, तो फिर से इन प्रतिबंधित निर्माण कार्यों को शुरू किया जाता है। कंस्ट्रक्शन एक्टिविटीज से PM 2.5 और PM 10 कण वातावरण में छोड़े जाते हैं।
फसलों के अवशेष जलाना
पंजाब और हरियाणा में बारिश की मौसम में धान की खेती की जाती है। आंकड़े देखे जाए तो पंजाब और हरियाणा चावल की मुख्य उत्पादक है। लेकिन चावल की कटाई के बाद थोड़ा सा हिस्सा जमीन में रह जाता है। कुछ दिनों के बाद उस जमीन पर गेहूं की बुवाई करनी होती है। समय कम रहने की वजह से ज्यादातर किसान उस पराली को जला देते हैं।
हिमाचल प्रदेश से निकलने वाली उत्तर पश्चिमी हवाएं पंजाब और हवा हरियाणा से गुजरती हुई दिल्ली तक पहुंचती है। सर्दियों की शुरुआत में जब धान की पराली को जलाया जाता है, तो यह ठंडी हवाएं धुएं को साथ लेकर दिल्ली पहुंचती है और पहले से मौजूद प्रदूषकों के साथ मिलकर दिल्ली- एनसीआर क्षेत्र में धुएं और कोहरे का मिश्रण बनाती है।
Thermal power plant
दिल्ली एनसीआर में 11 थर्मल पावर प्लांट है। थर्मल पावर प्लांट में आमतौर पर कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस, या भूतापीय स्रोतों जैसे कई तरह के ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है। ये पावर प्लांट, दुनिया में बिजली का एक प्रमुख स्रोत हैं। 2023 में पार्टिकुलेट मैटर को बढ़ाने में 8%हिस्सेदारी थी।
दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य संबंधित कौन-कौन सी बीमारियां होती है?
दिल्ली में बढ़ता वायु प्रदूषण दिल की बीमारियां, सांस संबंधित समस्याएं आंखों और त्वचा में जलन जैसी समस्याओं को बढ़ा रहा है। वायु प्रदूषण में मौजूद सूक्ष्म कण जो PM 2.5 और PM 10 है। वह फेफड़ों में जाकर अस्थमा और सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याओं को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। पीएम 2.5 बहुत ही छोटे कण होते हैं। जो ईंधन जलाने, कंस्ट्रक्शन गतिविधियों से निकलते है। सल्फर डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैस आंखों में जलन एवं खुजली का काम करती है। आज दिल्ली के हर व्यक्ति की आयु लगभग 12 साल से कम हो चुकी है। खासकर बच्चों में और बुजुर्गों में सांस लेने की दिक्कत बढ़ती जा रही है। यह हालत दिल्ली में मौजूद लोगों की है। यमुना के आसपास की जैव विविधता प्रदूषण के कारण तबाह होने के मार्ग पर है। दिल्ली की जहरीली हवा के जहरीले तत्व दिल के दौरे और स्ट्रोक के कारण बनते हैं। इसी के साथ रोग प्रतिकारक शक्ति भी कम होती है। जिससे अन्य रोगों को रोकने के लिए शरीर साथ नहीं देता। सर्दियों के दिनों में दिल्ली में प्रदूषण इतना बढ़ता है कि स्कूलों को सरकार द्वारा बंद करना पड़ता है। मतलब प्रदूषण का हर तरीके से हर क्षेत्र में प्रभाव पड़ रहा है।
जिससे आर्थिक, पर्यावरणीय,शारीरिक नुकसान हो रहा है। अगर दिल्ली को बीमारियों का निर्माता को कहा जाए तो गलत नहीं होगा।जागरूकता और सामूहिक प्रयासों से ही हम एक स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण बना सकते हैं।
दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
- दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के लिए GRAP(Graded Response Action Plan) को उस इलाके की स्थिति देखकर कौन सा चरण लागू करना है? यह तय होता है। अलग-अलग AQI पर अलग-अलग चरणों को लागू किया जाता है। AQI 400 से अधिक होता है तो GRAP चौथा चरण लागू किया जाता है। जिसमें कई निर्माण कार्यों को स्थगित किया जाता है।
- दिल्ली सरकार द्वारा ऑड-ईवन काफी प्रचलित योजना लाई गई। जिससे महीने की तारीख को देखकर वाहनों को रास्ते पर चलाया जाता है। यह योजना इस योजना को सर्दियों के दिनों में खासकर सर्दियों के दिनों में लागू किया जाता है। जिसमें एक दिन विषम प्लेट संख्या वाले, तो दूसरे दिन सम प्लेट संख्या वाली वाहनों को रास्ते पर निकलेंगे।
- रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ” जैसे अभियान चलाए जाते हैं, जो ड्राइवरों को ट्रैफिक सिग्नल पर इंजन बंद करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
- एंटी डस्ट अभियान से निर्माण स्थलों की नियमित जांच की जाती है ताकि धूल नियंत्रण नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके।
ऐसे कई सारे योजनाओं द्वारा सरकार प्रदूषण को कम करने का प्रयत्न कर रही है लेकिन दूसरी ओर गाड़ियों के खरीदारी बढ़ती जा रही है। तो यह प्रदूषण कम होगा कैसे?
क्या दिवाली के दौरान पटाखों का प्रदूषण पर प्रभाव पड़ता है?
प्रदूषण की मात्रा इतनी ज्यादा होने की बावजूद अगर दिल्ली में पटाखे फोड़ने की मंजूरी सरकार के द्वारा दी जाए तो अपने मौत को गले लगाने जैसा होगा और दिल्ली में यह हो भी रहा है। वायु प्रदूषण के कारण जो बीमारियां हो रही है उन बीमारियों को बढ़ावा देने के लिए यह एक एंटीबायोटिक की तरह काम करेगा। पटाखों से वह सभी जहरीली गैस निकलती है जो पहले से ही दिल्ली के वातावरण में मौजूद है। पटाखों से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा दो से तीन गुना ज्यादा होने में सहायता मिलती है।
वायु प्रदूषण का पशु एवं पक्षियों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
यह प्रश्न जिस किसी के भी मन में उठता है। वह वास्तव में त्योहारों और धर्म का महत्व भी जान पाता है। आज कई सारी बीमारियों को ठीक करने के लिए आधुनिक तकनीके ,आधुनिक दवाइयां मौजूद है। जिसका उपयोग करके हम इंसान अपनी आयु बढ़ा सकते हैं। लेकिन उन पशुओं,पक्षियों और पर्यावरण में पाए जाने वाले अन्य जीवों का स्वास्थ्य जब इन कारणों से खराब होता है, तो उन्हें किस प्रकार बचाया जा सकता है। जब किसी पशु को त्वचा संबंधित विकार या सांस लेने में दिक्कत हो जाए तो वह उस दर्द को कैसे झेलता होगा? हम उस पशु के तड़प तड़प कर मरने के लिए जिम्मेदार है। पर्यावरणीय जीवन को बचाने का मतलब खुद को बचाना होता है। पर्यावरणीय जीवन को बचाना है तो उपभोग को कम करना ही होगा।
दिल्ली के प्रदूषण में सुधार लाने के लिए क्या करना होगा?
शिक्षा और जागरूकता
आज दिल्ली की आबादी 1.6 करोड़ से ऊपर है। इतनी बड़ी जनसंख्या का वेस्ट मैनेजमेंट को संभालना बहुत ही कठिन कार्य होता है। अपने कचरे को अपने पर्यावरण को संभालने के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक करना होगा। यही सबसे आसान और सीधा उपाय है। लोगों के अंदर पर्यावरणीय प्रभावों के जानकारी की कमी है। पाठशालाओं में विद्यार्थियों को पर्यावरणीय प्रभावों और उसके उपाय पर विस्तृत से जानकारी देनी होगी। सरकार को यह जानकारी हर व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए अच्छे बजट की योजना तैयार करनी होगी। लोगों में स्वच्छता अभियान, वृक्षारोपण अभियानों को कार्यों के माध्यम से बढ़ावा देना होगा।
परिवहन में सुधार
दिल्ली में आज मौजूदा समय में सबसे ज्यादा प्रदूषण वाहनों से होता है। क्यों ना इस वाहनों को ही जड़ से निकाल दिया जाए। शहरों में सिर्फ सार्वजनिक वाहन या सरकार के द्वारा कुछ चुने हुए वाहनों का ही उपयोग किया जाना चाहिए जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से चलते हो। इसके साथ कुछ अन्य काम के वाहनों को ही शहरों में आने की इजाजत दी जानी चाहिए। इससे ट्रैफिक की समस्या और शोर कम होगा। लेकिन इन सार्वजनिक वाहनों से कम दाम में या मुफ्त में आवागमन करने की सुविधा देनी होगी। जिससे हर एक नागरिक इसका उपयोग कर सके।
पैदल चलना या साइकलिंग करना
अगर दिल्ली को वास्तव में साफ सुथरा रखना है, तो दिल्ली वालों को पैदल चलना होगा, साइकिलिंग करनी होगी। यह दिल्ली वालों को ही नहीं बल्कि पूरे भारत में ऐसा करने की आवश्यकता है। आज भारत में नौजवानों की संख्या बच्चों और बूढ़ों से कई ज्यादा है। तो इन आदतों को अपने जीवन में उतारने की खासतौर पर आज आवश्यकता है।
हरियाली और की जैव विविधता को बढ़ाना
अगर वाहनों को शहरों में चलाने से रोक दिया जाए, तो वहां पर हरियाली और जैव विविधता को बसाने में बड़ी सहायता मिलती है। शोर कम होने की वजह से पशु एवं पक्षी आराम से पेड़ों पर रह सकते हैं। इसी के साथ हमें अपनी छत पर, बालकनी में बागवानी करनी चाहिए। नदियों को साफ करके कई सारे जीवन को आवास प्रदान कर सकते हैं। जो गंदगी की वजह से उन्हें प्राप्त नहीं हो रहा है। शहरों में झीलों की संख्या को बढ़ाना होगा। जिसके कारण भविष्य में पानी की समस्याएं नहीं आएगी। ग्राउंड वाटर लेवल को बढ़ाने में सहायता मिलेगी। एक हरा भरा शहर मन को शांति एवं मानसिक तौर पर स्थिर रखने में मदद कर सकता है। आज दिल्ली वालों की आयु 12 वर्ष से कम हो चुकी है। वहीं पर इन उपायों को अपनाने से उनकी आयु 20-25 वर्ष से बढ़ सकती है। मानवीय हस्तक्षेप के कारण जिन पशु ,पक्षी की प्रजातियों को विलुप्त होना पड़ रहा है, उन प्रजातियों को बचाने में मदद मिल सकती है। शहरों में छोटे-छोटे वनों का निर्माण और जितनी हो सके उतने पेड़ और पौधे लगाने की जरूरत है।
पटाखें जैसी चीजें पूरी तरह से बंद करनी चाहिए
स्वास्थ्य ही जीवन है। अगर देश के लोगों का स्वास्थ्य साथ देगा तभी तो अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल पाएगा। ऐसी खुशियों से क्या लाभ जिसके कारण हमारे समाज का स्वास्थ्य बिगड़ रहा हो।
अनावश्यक वस्तुओं के उत्पादों पर रोक लगाया जाए
बाजार में कई अलग-अलग तरह की वस्तुएं मौजूद होती है। जिनका इस्तेमाल कुछ खास नहीं होता। लेकिन उसको बनाने में संसाधनों की लागत ज्यादा आती है। उन वस्तुओं का निर्माण करते समय ग्रीन हाऊस गैसें वातावरण में छोड़ी जाती है।उससे वायु प्रदूषण और प्लास्टिक पॉल्यूशन की मात्रा बढ़ जाती है।
उद्योगों पर निगरानी
भारत में ज्यादातर उद्योगों की तरफ से नियमों का पालन नहीं किया जाता है। उत्पादों के निर्माण करते समय उपयोग किया हुआ पानी नदी में छोड़ा जाता है,जबकि उस पाणी को साफ करके नदी में छोड़ा जाना चाहिए। सरकार के द्वारा सख्त नियमों का पालन करते हुए उद्योग चलाने वाले लोगों को दंडित करना होगा।
कचरे का योग्य प्रबंधन
पहले तो शिक्षा और जागरूकता की तहत आवश्यकता रहने पर ही चीजों को खरीदने की समझ लोगों को प्राप्त होनी चाहिए। नई तकनीक को अपनाकर जैविक कचरे का खाद और ऊर्जा निर्मिती करनी चाहिए। नियमित रूप से कचरा को संग्रहित करके उसकी योग्य व्यवस्था करनी होगी जिसके कारण वह सड़कों पर फैलकर ना पड़े।