Cleanliness Day 2024:भारत में २०१४ से हर साल २ अक्टूबर स्वच्छता दिन के रूप में मनाया जाता है और आपको तो पता ही होगा कि २ अक्टूबर गांधी जी की जयंती भी है।तो आज हम आपको बताएंगे कि
गांधी जी और स्वच्छता खास क्यों?
स्वच्छता की विषय में गांधीजी कहते हैं आज हमारी प्रवृत्ति केवल कौटुंबिक जीवन तक सीमित है। हर कुनबे का हर आदमी कुटुंब का घर जैसे साफ रखता है। वैसे ही हर कुनबे को अपने गांव के लिए काम करने को तैयार रहना चाहिए। तभी गांव वाली सुख से रह सकते हैं। आज तो हर बात के लिए सरकार पर नजर है।सरकार घर साफ कराये, सरकार रास्ते साफ कराये, सरकार रास्ते बनाए, सरकार हमारे यह तालाब साफ रखें ,सरकार लड़कों को पढ़ाई दे, सरकार बाघ भालू से बचाए, सरकार हमारे धन दौलत की हिफाजत करें। इस भावना ने हमें अपाहिज बना दिया है और यह अपाहिज बढ़ती ही जा रही है। साथ ही करका बोझ भी बढ़ता जाता है। यदि गांव वाले गांव की सफाई शोभा और रक्षा के लिए अपनी कुछ जिम्मेदार माने तो बहुत सुधार तत्काल बे- पैसेके हो जाए। इतना ही नहीं बल्कि आवागमन की सुविधा और आरोग्य की वृद्धि के कारण गांव की आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाए। सारी गांव के रास्तों को अच्छा और पक्का बनाने के लिए एक ही तरह की सुविधा नहीं होती। कहीं कंकड प्राप्त हो सकते हैं तो कहीं पत्थर और ईटों की रोडों से काम चल सकता है। रास्तों को पक्का करने में किस उपाय से काम लेना यह देखनेका काम स्वयं सेवक का है।गांव की रचना में भी कोई नियम होना चाहिए। गांव की गलियां चाहे जैसी उबड-खाबड, टेढ़ी-मेढ़ी की बजाय सब तरह से अच्छी होनी चाहिए और हिंदुस्तान में जहां करोड़ों आदमी नंगे पैर चलने वाले हैं। वह रास्ते इतने अधिक साफ होने चाहिए कि उन पर चलती हुई तो क्या जमीन पर सोने में भी किसी तरह की हिचक आदमी के मन में ना हो।
गलियां पक्की और पानी के निकास के लिए नालीदार होनी चाहिए। मंदिर और मस्जिद स्वच्छ और जब देखो तब नई जैसी मालूम होने वाली होनी चाहिए। जाने वालों को शांति और पवित्रता की प्रतीति होनी चाहिए। गांव में और आसपास उपयोगी फल के पेड़ होने चाहिए। गांव में धर्मशाला और रोगियों के इलाज के लिए छोटा सा उपचार ग्रह भी होना चाहिए,की हवा,पानी वगैर खराब ना हो। हर एक गांव में अपना अन्न और वस्त्र गांव में ही पैदा करने या बनाने की शक्ति होनी चाहिए। चोर, डाकू, शेर, बाघ से बचाव करने की शक्ति होनी चाहिए ऐसे ही गांव ‘स्वावलंबी’ कहला सकते हैं
और यदि सारे गाँव ऐसे हो जायें, तो हिन्दुस्तानका दुःख बहुत कुछ कम हो जाय।
यह दशा लाना असम्भव तो है ही नहीं, परन्तु जितना हम समझते होंगे उतना मुश्किल भी नहीं है। कहते हैं, हिन्दुस्तानमें साढ़े सात लाख गाँव हैं। इस हिसाबसे एक गाँवकी आबादी ४०० पड़ती है। मेरा दृढ़ मत है कि ऐसी छोटी आबादीवाले गाँवमें अच्छी व्यवस्था करना बहुत आसान है। उसके लिए बड़े व्याख्यानोंकी या कौंसिलके कायदोंकी जरूरत नहीं होती। सिर्फ एक ही जरूरत है और वह एक हाथकी उँगलियोंके पौरोंपर गिने जानेभरके शुद्धभावसे काम करनेवाले स्त्री-पुरुषोंकी । ये अपने आचरणसे, सेवा-भावसे, प्रत्येक गाँवमें जरूरतके अनुसार फेरफार करा सकते हैं।
आगे गांधी जी कहते हैं ~
यह भी नहीं, कि उन्हें रात-दिन इसी काममें लगा रहना पड़े। अपने निर्वाहका धंधा करते हुए भी अपनी सेवा-वृत्तिसे ये गाँवमें महत्त्वपूर्ण फेरफार करा सकते हैं।
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ऐसे सेवकोंको किसी बड़ी तालीमकी जरूरत नहीं। बिल्कुल अक्षर-ज्ञान न हो तो भी ग्राम-सुधारका काम हो सकता है। इसमें सरकारके बाधक होनेकी बात नहीं है। उसकी सहायताकी भी कम ही जरूरत है। हर गाँवमें ऐसे स्वयंसेवक निकल आयें तो बिना किसी आडम्बरके, बिना बड़े आन्दोलनके सारे हिन्दुस्तानका काम बन जाय और थोड़े प्रयत्नसे अकल्पित परिणाम हो सकता है। इसमें धनकी भी आवश्यकता नहीं। जो कुछ जरूरत है, सिर्फ सदाचारकी अर्थात् धर्मवृत्तिकी।
मैं अनुभवपूर्वक जानता हूँ कि किसानोंकी तरक्कीका यह आसानसे आसान रास्ता है। इसमें एक गाँवको दूसरे गाँवकी राह देखनेकी जरूरत नहीं है। जिस गाँवमें किसी एक भी स्त्री या पुरुषका लोक-सेवा करनेका शुद्ध विचार हो, वह उसी क्षण काम शुरू कर सकता है और उसमें उसके सारे हिन्दुस्तानकी पूरी-पूरी सेवाका समावेश हो जाता है।