Air pollution and sell of medicines
भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में क्लाइमेट चेंज का असर दिखाई दे रहा है. विश्व के सबसे प्रदूषित देश के मामले में बांग्लादेश, पाकिस्तान के बाद भारत का स्थान आता है. 2023 के आंकड़ों के अनुसार बेगूसराय, गुवाहाटी, दिल्ली, नई दिल्ली, मुल्लापुर, जैसे 50 मे से 42 भारतीय शहर सबसे ज्यादा प्रदूषण के सूची में शामिल है. इस सूची में सूची के प्रथम स्थान पर आने के लिए भारत के ही शहरों में दौड़ दिखाई दे रही है.भारत में सबसे ज्यादा प्रदूषण पीएम 2.5 के कणो के द्वारा होता है। पीएम 2.5 की कई स्रोतों से तो से आता है जिसमें कोयला, तेल, लकड़ी,लकड़ी का कोयला जलने से उसका उत्सर्जन होता है। इन बड़े-बड़े शहरों में ट्रैफिक बड़े मात्रा में होती है. वाहनों की शहरी वायु प्रदूषण में 20 से 30% की हिस्सेदारी है. जब वाहन धीरे से चलता है तो उससे प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है और शाम के समय में बड़े-बड़े शहरों में यही होता है. 2021 में वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से पूरी दुनिया में लगभग 80 लाख से ऊपर लोगों की जान चली गई है। उनमें चार लोगों में से एक की मौत भारत में हुई है। भारत में 20 लाख से ऊपर लोगों ने जान गवाही है.दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे 10 बड़े शहरों में करीब 7.2% लोगों की मृत्यु हर रोज हवा प्रदूषण के मारे हो रही है. पीएम 2.5 गण बहुत ही छोटे होते हैं। इसके कारण हृदय रोग, फेफड़े का कैंसर तथा अस्थमा और फेफड़ों के विकारों से पीड़ित होते हैं। हवा में बदलाव के कारण भारत में हर एक आदमी की उम्र 5 वर्ष से कम हो गई है और दिल्ली जैसे इलाकों में तो इनकी आयु 12 वर्ष तक कम हो चुकी है इस हवा में बदलाव के कारण। और इनको ठीक करने के लिए जिन दावों का इस्तेमाल किया जाता है उनमें भी बढ़ोतरी दिखाई दे रही है। उधर फार्मास्यूटिकल इंडस्टरीज में काफी अच्छी ग्रोथ मिलने की आशंका है। जितना खर्च हवा प्रदूषण वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा किया जा रहा है उससे कई ज्यादा खर्च इन प्रदूषण से होने वाले वाली बीमारियों को ठीक करने के लिए हो रहा है।
अमेरिका में भी 2033 तक अस्थमा की दावाओं का बाजार 14.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा। और विश्व में देखा जाए तो 2023 में 24.45 बिलियन यूएस डॉलर है जो 2035 में 40 बिलियन के पार हो जाएगा.दिन-ब-दिन लोगों का ढलता हुआ स्वास्थ्य,कई प्रकार के प्रदूषण, जिसे उत्पन्न होती अनेक बीमारियां, अस्वस्थ जीवन शैली इन कारणों की वजह से दवावों का बाजार पूरे विश्व में बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। भारत में फार्मास्यूटिकल उद्योग यानी कि दवावों का बाजार 2022 के आंकड़ों के अनुसार 49 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। अनुमान लगाया जाता है कि 2030 में यह बाजार मूल्य 130 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।वही 2040 में देखा जाए तो 270 और 2047 में 350 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
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भारत के लोग पर्यावरणीय या प्रकृति के बाढ़ सूखा गर्मी ऐसी ऐसी आपदाओं से प्रभावित तो होते हैं लेकिन उसके बारे में कभी ज्यादा विचार नहीं करते. इन विषयों को बड़े राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा नहीं कर पाते. या यूं कहे कि इन विषयों पर चर्चा ही नहीं करना चाहते। जिस प्रकार देश में महंगाई बेरोजगारी जैसे विषय है जिनका समाधान तो निकालना ही चाहिए उसके साथ-साथ पर्यावरणीय बदलाव और उसका हमारे जीवन पर पढ़ता हुआ प्रभाव के बारे में भी हमें सोचना होगा। यह तभी संभव है जब हम प्रकृति का विचार अपना विचार करके देखें।